5 Simple Techniques For hanuman chalisa

भावार्थ – हे नाथ श्री हनुमान जी ! तुलसीदास सदा–सर्वदा के लिये श्री हरि (भगवान् श्री राम) के सेवक है। ऐसा समझकर आप उनके हृदय–भवन में निवास कीजिये।

हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥

और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फ़ल पावै॥

भीम रुप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे॥

शंकर सुवन केसरीनन्दन। तेज प्रताप महा जग वन्दन॥

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकन्दन राम दुलारे॥

राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥

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सबकी न कहै, तुलसी के मतें इतनो जग जीवनको फलु है ॥

व्याख्या – मनरूपी दर्पण में शब्द–स्पर्श–रूप–रस–गन्धरूपी विषयों की पाँच पतवाली जो काई (मैल) चढ़ी हुई है वह साधारण रज से साफ होने वाली नहीं है। अतः इसे स्वच्छ करने के लिये ‘श्रीगुरु चरन सरोज रज’ की आवश्यकता पड़ती है। साक्षात् भगवान् शंकर ही यहाँ गुरु–स्वरूप में वर्णित हैं–‘गुरुं शङ्कररूपिणम् ।‘ भगवान् शंकर की कृपा से ही रघुवर के सुयश का वर्णन करना सम्भव है।

भावार्थ – अपने तेज [शक्ति, पराक्रम, प्रभाव, पौरुष और बल] – के वेग को स्वयं आप ही सँभाल सकते हैं। आपके एक हुंकारमात्र से तीनों लोक काँप उठते हैं।

His ability to raise mountains and leap throughout extensive distances serves like a reminder to his devotees which they as well can prevail over the seemingly insurmountable road blocks inside their life.

तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ ह्रदय महँ डेरा॥

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